Thursday 10 September 2015

जब दिल किसी पे आता है

 तेरी आँखों में डूब जाने का दिल करता है
 तेरे होठों से छू जाने का दिल करता है
 तेरी यादों में मदहोश होने का दिल करता है
 तेरे लिये सबकुछ खोने का दिल करता है
 तेरे ही सपनों में सोने का दिल करता है 
 तेरे न होने पर रोने को ये दिल करता है
 तेरा ही बस होने को करता है 
 जाने क्यों डरता है पर पल पल ये मरता है
 अंदर ही अंदर जाने क्या ये करता है 
 जलता है बुझता है फिर चलता है  
 इधर उधर हर किधर से तुमपर हि आकर ठहरता है  
 लड़ता है झगड़ता है सबसे और खुद से फिर भी डरता है। 
 रुकता है संभालता है तुमपे जो टिकता है
 आता है जाता है फंसता और फंसाता है 
 ये दिल क्या क्या करता है और क्या क्या कराता है।
            जब दिल किसी पे आता है।

Sunday 3 August 2014

dharma


धर्म
इंडियन  myth
किसी  भी  इंसान  को  श्राप  और  वरदान  देने  का  अधिकार या योग्यता का होना ,जो  की  धर्म  और इंसानियत  के  मानक  पर  सही  एवं खरी  नहीं  उतरती।
महाभारत  का  युद्ध  एक  धर्म  युद्ध  या  फिर  शक्ति  प्रदर्शन ! बस  इससे   ये  सिद्ध  हो जाता  है  कि अगर  बल  है  तो  व्यक्ति  सोच  के  परे   सही  गलत  का  निर्णय  अपने  अनुरूप  बदल  सकता  है .सकुशल  और  सर्व  शक्तिमान  ही  विजेता  होता  है  .उसके  बाद  सही  गलत  तो  सिर्फ  धर्म  के  मानक  पे  तौल लिया  जाता  है  और  मानक  भी  विजेता  के  अनुसार  ही  तय  किये  जातें  हैं  ...चाहे  उस  धर्म  युद्ध  में  न  जाने  कितने बेकसूरों  का  रक्त   क्यों  न  बहा  हो  लेकिन  रक्त  की  बूंदे  केवल  उन्ही  की  माईने  रखती  हैं  जिन्हे  धर्म  और  जाती  विशेष  का  अधिकार  मिला  है 
जैसे आज के दौर में ही देख लें ISIS का सफाया करने के लिए न जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया गया सीरिया का एक बड़ा हिस्सा जो पहले आतंकवाद का गढ़ हुआ करता था अब वहां का बच्चा बच्चा तक जीने के लिए ,कुछ दिन की जिंदगी के लिए तरस रहा है क्या ये हालात धर्म की उपज हैं या विकृत इंसानी मानसिकता या सोच की जो उसे इतना विकृत ,लचार,बेबस बना देती है की सही गलत की सोच समझ होने के बावजूद वो गलत और तबाही के रास्तों पे चलने लगता है और खुद के मंसूबों को अंजाम तक पहुँचाने हेतु बेकसूरों को बरगलाकर तबाही के रास्ते में धकेल देता है माना दुनिया में शक्ति की पूजा होती है और लोग ये भी सोचते हैं की एन केन प्रकारेण जैसे भी हो उसे हासिल करलो लेकिन तबाही का रास्ता कभी किसी को मोम जैसा सरल और हवा की तरह हल्का और फूल जैसा सुन्दर और पवित्र एवं दिलों पर राज करने वाला नहीं बना देगा। गलत करने वाले को सजा मिलना लाजमी है लेकिन उसके आड़े हम खुद गलतियां करने लगें ये कहीं से सही नहीं है।जैसे कि महाभारत हि देख लीजिये....अपने  अपमान  का  बदला  ...अपना   स्वार्थ  सिद्धः करना  ....अपने  लाभ  के  लिए  १००  बेकसूरों  की  बलि  चढ़ाना  धर्म  नही है मेरा ये मानना है कि दुनिया को धर्म समझाने का तरीका है जिसे बड़े अपरिपक्व तौर से पेश किया गया है   ये  सब  काम  तब  हुआ  जब  शक्ति  के  बल  पर  युद्ध  होने  से  रोका  जा  सकता  था  परिस्तिथियों  को  बदला  जा  सकता  था  क्यूंकि समस्त देवताओं और दैवीय शक्तियों की नज़र इस युद्ध से पूर्व  ही समस्त प्रणाली पे टिकी हुई थीं...राजा  को  प्रजा  के  अनुकूल  बनाया  जा  सकता  था ...लेकिन  कोई  प्रयास  ऐसा  न  हुआ  जो  बालियां  रोक  सके । युद्ध और  बलियाँ और बलिदान इस सबको प्रदर्शित करने के क्या माईने थे क्या इसका मकसद दुनिया को धर्म की सीख देना था या फिर कुछ और समझाना था अगर ऐसे विषय में तर्क करने बैठो तो इंसान को धर्म के  विरुद्ध समझा जाता है और उससे अधर्मी की संज्ञा दी जाती है   अगर  ये  धर्म  है ,तो  नही  चाहिए  मुझे  ऐसा  धर्म .....अगर  गुरु  द्रोण   जैसे  गुरु  द्वारा   सर्व  श्रेष्ठा  का  अधिकार  किसी  को  देने  के  बाद  किसी  और  का  उस  श्रेष्ठा  से  अधिकार  चला  जाना और उसकी योग्यता और परिश्रम का खत्म हो जाना ,  योग्यता  का  समाप्त  हो  जाना ये सब क्या है  ,ये किसी भी कला का अपमान है ये धर्म  नही है । किसी  और  का  इतना  श्रेष्ठ   न  हो  पाना   ....वरदानों  से  शक्ति   की  उपज  होना  या  शक्ति  बढ़ना ...परिस्तिथियाँ  बदलना ......व्यक्ति  का  कुल  उसके  धार्मिक  होने  का  अधिकार  और  मानक  होना..हक़  होना .....जुएं में अपनी संपत्ति अपनी प्रजा और साथ ही साथ अपनी अर्धांग्नी (पत्नी )हार जाना या उसकी जिंदगी उसकी आबरू दांव पर लगाना  मात्र ही मेरे धर्म के मानक के अनुकूल नही है ...   बिलकुल  भी  मेरे  मानक  इस   पर  खरे   नही  उतरते   बिलकुल  भी  नही .....
16  हज़ार औरतों  को  बंदी  हालत  से  मुक्त  कराने के बाद   उनके  भविष्य  को  ध्यान  में  रखते  हुए  एक  व्यक्ति  द्वारा  १६  हज़ार    से  गोपियों  से  शादी  करना  अगर इससे धरम का ज्ञान होता  है या उनका भविष्य सवरता है तो ये बिलकुल सही नही है उनको उनके पति ,भगवान की एक माया के रूप में ही मिले थे जो कि एक कल्पना ही मात्र थे  इससे परे  अगर उनको जीवन साथी मिला होता तो कहीं ज्यादा उनका जीवन सार्थक होता ....कुंती  को  5 पुत्रों  का  वरदान  मिलना ....बिना  शादी  के  देवताओं  से  पुत्र  होना .....शादी  से  पहले  हुआ  पुत्र  धरम  के  अनुसार  न  होना  और  शादी  के  बाद  हुए  सब  पुत्र  धर्म  के  अनुसार  होना  ...पुत्र कर्ण को सामने  देखकर भी उसे पहचानने के बावजूद न पहचानना और  न अपनाना  .पाण्डु  से  कोई  संतान  न  होना ....द्रोपदी  को  पांच  पति  का  वरदान  मिलना  जो  उसके  मन  की  इच्छा  बिलकुल  नही  था  न  ही  वरदान  मांगते  वक़्त  पूर्व  जनम  के  समय और  न  ही  अगले  जनम  के  लिए और अगर उसने शिव जी से पांच बार पति -पति कहा भी तो शिव जी द्वारा उसके मन कि बात को जाने बगैर उसके मूल भाव को जाने बगैर ऐसा निरर्थक वरदान देना एक अपने आप बहुत बड़ा सवाल है जो भगवान और इंसान के रिश्ते के बीच में एक लकीर कि तरह है भगवान तो हर बोली हर भाषा और हर भावना को भली भांति समझता है क्यूंकि इंसान का मानना है कि इसका मूल हि वो भगवान खुद है जो इंसान के मन को हि समझ कर उसकी साड़ी समस्याओं को जान लेता है और उसके अनुसार इंसान को एक पथ प्रदर्शित करता है और बाकि इंसान कि मर्जी पर होता है कि वो उसके दिखाए गए मार्ग को अपनाये और लम्बी दूरी तय करे इंसान का मानना और न मानना हि इसके बीच का फ़र्क़ होता है और उसकी मर्ज़ी का + भगवान के दिखाए गए मार्ग का निचोड़ यानि हल होता है फिर भगवान ऐसा रास्ता कैसे बना सकते हैं जिसके बुरे परिणामों के बारे में वो पहले से जानते हों और जो उसके भक्त को एक ऐसे मार्ग में धकेल रहे हों जहाँ पर पग पग में उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उसे अपने वजूद पर से हि घृणा होने लगेगी  ..इसके बावजूद .द्रोपदी! जिसने राजा द्रुपद के यहाँ जन्म लिया और हमेशा लोगों के भले की मनोकामना की , तब  भी  उससे  पांच  पतियों   से  शादी  करनी  पड़ी  क्योंकी  कुंती  के  शब्द  थे  कि  पांचों  द्वारा  वस्तु  को  बाँट  लिया  जाये  ...अगर  कुंती  महाभारत  में  नही  होती  तो  उनके  इन्  शब्दों  का  कोई  मोल  होता ! ....जो  बिलकुल  भी  धरम  की  नीव  पर हि नही  टिके   हैं ..जो  मानव  की  पसंद  और  न  पसंद  से  बिलकुल  परे  है और वास्तविकता से बिलकुल परे है  जो दिल  के  रिश्तों  से  जुदा  है ...रिश्ता !!ये   क्या  कोई  रिश्ता  है  ये  तो  जिंदगी  की  तबाही  का  रास्ता   है ..पत्नी जैसा पवित्र रिश्ता भी महाभारत में बदनाम किया  गया ...क्या धर्म हमें यही सीखना चाहता था .जब  पांच  पांडव  किसी  स्त्री  को  बाँट  सकते  हैं  तो  १००  कौरव  क्यों  नही ये बात जरूर सुनने में अजीब लगती है और अजीब लगे क्यों न लगे क्यूंकि दुनिया में कुछ भी हो सकता है हर चीज़ कि उम्मीद (possibility)है अगर इंसान कुछ सोच सकता है और उसपर अमल होना ज्यादा मुश्किल न हो तो वो हो भी सकता है ....अगर  वो  ऐसा  करते  हैं  तो  वो  धरम  के  विरूद्ध  है ....ये तो केवल पक्ष् का सवाल हो जाता है की धरम किसके पक्ष में है नीति  किसके अनुसार है ...अगर  किसी  को  उसका   हक्क़   नही  मिलता  है  उसके  द्वारा  हक़  छीना  जाना  धरम  या  अधरम  को  परिभाषित  करता है तो इस धर्म कि बुनियाद बहुत कमज़ोर है  बल्कि हमारे सामने  और  भी  बहुत  से  मुद्दे  हैं  जो  धरम  को  परिभाषित  करते  हैं  उसकी  नीव  रखतें  हैं और जो वास्तव में धर्म को अंधकार से दूर रख सकते हैं इंसान कि समस्याओं को हल कर सकतें हैं और साथ में मानव का मार्गदर्शन करने में सहायक हो सकतें हैं  यहाँ  और  भी  बहुत  से ऐसे  मुद्दे  हैं  जो  धरम  को अलग रूप में  परिभाषित  करते  हैं  उसकी  नीव पर एक सवाल बनते हैं  ..... .पूर्व  जनम  का  वरदान  और  पाप  का  असर  अगले  जनम   में  होना ..क्या  ये  धरम  है ...आत्मा  शरीर  बदलती  है  और  आत्मा  शुद्ध   भी  होती  है  तो  इसका  मतलब हुआ  शरीर  में  प्रवेश  के  बाद  ही  आत्मा  अस्तित्व  में  आती  है  और  शुद्ध  और  अशुद्ध  भी  शारीरिक  अवस्था  में  होता  है  न  उससे  पहले  न  ही  बाद . इसका  मतलब  ही  तभी  बनता  है | तो  पिछले  शरीर  की  गलती  की  सजा  या  फिर  पुण्य  का  अवसर  या  लाभ , दूसरे   शरीर  को  क्यों  मिलता  है  दूसरे   की  सजा  किसी  और  को  क्यों  मिलती  है  ..ये  कहीं   से   भी    धरम  निर्पेछ  नही  है और ऐसा हो भी सकता क्यूंकि अगर धर्म के अनुसार हि चलें तो हमें धर्म में स्पष्ट रूप में बताया गया है की आत्मा कभी मरती नहीं और न हि उसे मारा या फिर कष्ट पहुँचाया जा सकता है जिस प्रकार मनुष्य वस्त्र इत्यादि बदलता है उसी प्रकार किसी के मृत्यु पर्यँत आत्मा उसका शरीर छोड़ कर एक नए शरीर के रूप में ढलती है एक नया जन्म लेती है और इसबीच उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता क्यूंकि न उसे जलाया जा सकता न हि मिटाया जा सकता न किसी प्रकार का कष्ट उसे मिल सकता है और न दिया जा सकता है वो तो अमर है जो किसी के वश में और प्रभाव में हो हि नहीं सकती क्यूंकि उसका वजूद हि केवल शरीर रुपी संसार में होता है और बाकि जगह वो केवल एक निर्जीव energy.मात्र होती है जिस पर कोई अधिकार हि नहीं कर सकता है ..
राम  का  पति  व्रता  होना  एक  ही  अर्धांग्नी  के  साथ  पूरी  जिंदगी  निभाना ..लेकिन  किसी  के  छोटे  से  कमेंट  की  वजह  से  सीता  का  घर  छोड़ने  या  फिर  राम  द्वारा  सीता  का  त्याग ,ये केवल पति और पत्नी के रिश्ते पर सवाल और उनके द्वारा लिए गए वचनों के अपमान और त्याग के रूप में देखा जा सकता है जहाँ दोनों कि गलतियां झलकती हैं दोनों का परस्पर अविश्वास झलकता है दोनों कि अपरिपक्वता झलकती है क्या है ये ? क्या  ये  धर्म  है  अगर  राम  ने  सीता  का  त्याग  किया  तो  राम  ने  पति  शब्द  का  अपमान  किया  और  अगर  सीता   ने  राम  का  त्याग  किया  तो  सीता  ने  भरोसे ... पत्नी  शब्द ...पूरी   जिंदगी  साथ  में  निभाना,  हर  मुस्किल  का  साथ  में डटकर  सामना  करना  ,पति  के  सम्मान .... पत्नी  धरम  का  अपमानं  और  त्याग  किया है  जो  की  बिलकुल  भी  धर्म  निर्पेछ  नही  है|
धरम  वो  चीज़  है  जिसको   कोई  लिख   नही  सकता कोई बोलकर या इशारों में बयां नहीं कर सकता  ....भगवान  भी  नही  क्यूंकि  वही  एक  ऐसी  चीज़  है  जो  सर्वमान्य  है  भगवान  भी  उसी  की  उपज  हैं  उसके  रखवाले  हैं  नीति  नियोक्ता  हैं  लेकिन  उससे  ऊपर  नही ....नियति ...इच्छा ....इंसानियत ....मानवता ....उपकार ....सहियोग ...निजता ...पराकाष्ठा ....उपयोग ....जातां ...कर्म ..साहस  ..नीयत ..वजन ...धैर्य ...योग्यता ....वजह ...कारण ...तिरस्कार ..लोभ ..लालच ...इत्यादि  ...ये  सब  धरम  की  उपज  हैं  पूरा  संसार  इन्ही  मापदंड  में  खड़ा  है ....आत्मा  के  शरीर  में  प्रवेश  के  साथ  ही  उसमे  इन्  सब  का  निवेश  धीरे  -2 समयानुकूल  और  परिस्तिथियानुसार   प्रविस्ट  होता  जाता  है  जो  समय  समय  पर  निखरकर  सामने  आता   रहता  है ....इसी  का  समावेश  जीवन  का  सही  मायने मे एक  स्तर  तय  करता  है  जिसकी  वजह  से  ही  व्यक्ति  महानता   का  दर्जा प्राप्त  करता  है  ,महान  बनता  है ...और  धरम  का  साक्षात्कार  करता  है  ..जो  जीवन  का  मूलभूत  उद्देश्य  है ,कर्म-धर्म संपन्न ,शक्ति-सहयोग- समबुद्धि  ....मेरा  मानना  केवल  यह   है  धरम   को  डर  की  उपज  की  तरह  सामने  लाया  गया  है  हमेशा ...जबकि  ये  बिलकुल  अलग   है  जो  की  हमसे  बनता  है  हमारे  तौर  तरीकों  का  प्रत्यछ  दर्शन  होता  है  बाकि  और  कुछ  भी  नही  ...अपनी  आंतरिक  शक्तियों  को  पहचानो  और  सही  ढंग  से  काम  करो  ...कम से कम   ऐसा  करो  जिससे  किसी  और  को  पीड़ा  न   हो,  दुःख  न  पहुंचे , अगर  वो  धरम  की  राह  पे  चल  रहा  हो तो ...बाकि  सब  अपनी  इच्छा  के  अनुसार  दुनिया  बदल  रहे  हैं  जो  धरम  का  अर्थ  भी  नही  जानते  उन्हें  धर्म  सिखाना सब  के  बस  की  बात  नही ....कोशिश ! एक   माध्यम  है  लेकिन  सच्चाई  .....ईमानदारी ...सही  सोच  और  तरीका ..बहुतों   की  भलाई   के  लिए  किया  गया  काम   जो  कुछ  के  विपरीत  भी  हो   सकता  हो ..यही  सब  एक  राह  और  एक  मात्र  तरीके   है ....धरम  बचाओ  दुनिया  बचाओ ...
 धर्म डर और खुद पर अविश्वास ,इच्छा ,लालसा ,लालच,और पथ के मार्ग को छोटा करने यानि shortcut कि इच्छा के फलस्वरूप दुनिया के लोगों का अन्धविश्वास  और व्यापार बन गया है जिसकी आड़ में दुनिया में न जाने क्या क्या गलत हो रहा है कितना नुक्सान हो रहा है और ये ऐसा नुकसान है जो सबको दीखता तो है लेकिन अफ़सोस इसका किसी को नहीं होता लेकिन जाने अनजाने में बहुतों कि जरूरतों पर पानी फिर जाता है या फिर गरीब ,ज़रूरतमंद सुविधाओं से वंचित होने के साथ साथ इसका शिकार भी हो जाता है
ये धर्म नही बंधन है जो इंसान को भगवान से बांध के रखता है
माँ बाप को संतान से बांध  कर रखता है
संसार को (धर्म की )जुबान से बांध के रखता है
प्रकृति को  जान से बांध कर रखता है
कर्म को सम्मान से बांधकर रखता है
इंसान को प्यार इज़्ज़त रिश्तों और भरोसे में बांध कर रखता है


                                                                                                 ओशो  

Sunday 15 June 2014

nayisooch

एक  नज़र  देश  पर
........सब  कुछ  है  अपने  देश  में  ,रोटी  नहीं  तो  क्या .
........वादे  लपेट  लो  ,जो  लंगोटी  नही  तो  क्या .

आये  दिन  उत्तर प्रदेश और  देश  के  कई  स्थलों जहाँ  पर  खुदे  गड्ढों  से  सब  का  सामना  होता  है । ये कटाक्ष देश को चलाने वाले उन तमाम लोगों पर है जो खुदके और तराजू के बीच देश को तौल देते हैं खुदा के बाशिंदों की खुदाई किस कदर हमारे देश को ,हमारी सरज़मी को खोखली-कमज़ोर बुनियाद मे  जकड़े हुए है उस पर मै एक नज़राना पेश करता हूँ

यहाँ  खुदा  वहां  खुदा  सारा  जहाँ  खुदा  .....
ये शहर खुदा वो शहर खुदा हमारा देश भी  जगह  -2 पर  खुदा
भाइयों इस  बार  का  तो  वोट  बैंक  बेईमानी  से  जुदा  ,फिर  भी  न  जाने  हर  शख्स  जाने  ढूंढ़ता  किधर  खुदा .........

न  जाने  कितने  आये और  कितने  चले  गए  लेकिन  किसी  को  न  मालूम  कहाँ  खुदा
आज  के  रश्मों  रिवाजों  पर  सारा  भारत  फ़िदा  लेंकिन  ये  खुदा   का  बंदा जान  न   सका  कि  कौन  और  कहाँ  है  खुदा .
मंदिर  मस्जिद  की  ऊंचाइयों  से  चिल्ला  -चिल्ला  कर  सब  का  गला   है  रुँधा
लेकिन  अफ़सोस  बस  इस  बात  का 
 कि  कोई  न  जान  पाया  किसका  है  खुदा .
जब रात लेती है रुक्सत जब चाँद आस्मां से होता जुदा, तब सूरज देता रौशनी और दिन होता सदा |
जब जुर्म और झूठ को सच करता बेपर्दा ,तब इंसान और आवाम की शान बनता है खुदा|
क्यूंकि हर इंसान में बसता है खुदा!,
 हर कण में वो हर मन वो 
जन जन में वो जीवन में वोहि है बसा|
निर् आकर वो है साकार वो 
साक्षात हि हम में सधा ,
जो न हो जुड़ा वो है खुदा |
कुछ  और  भी  है  कहना  मुझको  ,
ये  जरूरी  है  समझना  सबको  ...
जो   नीति  है  उसको  न  बिगाड़ो ,
खुदा  के  बन्दे  हो  उसको  मनालो
मंदिर  मस्जिद  कि  दीवारों  से  उसको  मत  निकालो ,
वो  तो  तुम्हारे   दिल  में  है  उसे  मन  में  बसा  लो .
कमजोरों  कि  निशानी  है  खुदा  को  बुलाना ,
मंदिर मस्जिद कि दीवारों  पर  मढ़वाकर  उसको  सजाना जो  मजबूत  दिल  वाले  होते  हैं  वो  उसको  दिल  में  बसा  कर  रखतें  हैं ,
कमजोर  दिल  वालों  की  तरह  मंदिर -मस्जिद  में  सजाकर  नही  रखतें |.
खुदा  को  बुलाना  कमजोरों  की  निशानी  है  ,
खुदा  का  खुद  ब  खुद  आना  ही असलियत की बयानी है जो कहती  इंसानियत  की  कहानी  है ....
कहतें  हैं  इंसान  मरते  हैं  इंसानियत  मरती  नही ,
जवान  मरते  हैं  ,जवानी   मौत  से  डरती  नही .
आज  मै  सबसे  आह्वान  करता  हूँ ,
खुदा  का  बच्चा  हूँ  खुदा  को  ये  पल  दान  करता  हूँ .
दुनिया  में  खुदा  ही  एक  ऐसी  सख्सियत  है
 जिस  पे  सबका  अपना  हक़  है ,क्यूंकि  वही  एक  ऐसा  माध्यम  है  जो  सबको   एकसाथ  जोड़ता  है मिलजुलकर  साथ  रहने  और  साथ  देने  की  ताकत  देता  है , इसलिए   अपने  अंदर  के  इस  खुदा  को  पहचानो  और  बढ़ो  आगे  नौजवानों .